ओ ! मेरी कहकशां,
तुमको ढुंढू मै कहाँ-कहाँ
कितना भी मै डूब जाऊ
तुझको छू न पाऊ !
प्रकाश की गति
से भी तेज़,मन तुम्हारा
छोड़ जाता है मुझको बेसहारा,
और फिर जब खुलता है,
आकाशगंगा का ये पिटारा;
तो बस मै गिरता जाता हूँ
केवल गिरता जाता हूँ
उसी काली ब्लैकहोल में,
जहाँ से कभी कोई
वापस नहीं लौटा,
यहाँ तक कि समय भी नहीं।
-कृष्णा मिश्रा
३१ जनवरी १५
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