एक सपना सजाया है
तुमको न खोया है न पाया है
तुम प्यार की रस्म
अदा करो या न करो,
हमने तो जन्मो-जन्म
यही रस्म निभाया है
इक मंदिर है,
कोई शीशमहल नहीं,
मूरत को तेरी
जहाँ बिठाया है
तुम इम्तिहान
मेरी वफ़ा का क्या लोगे
बुझेगा न ये दिया
जिसको खुदा ने जलाया है
-‘जान’
‘पुरानी
डायरी के झरोखे से
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