ए-हुस्न-जाना..
दिल नही रहा अब तेरा दीवाना...
अब मुझको आया कुछ आराम है।
कि तेरे सिवा जहाँ में
और भी बहुत काम है।
ए-हुस्न-जाना..
दिल अब तुझसे बेजार है..
हुस्नो-इश्क जबसे बना व्यापर है।
हूँ जिसका मै सिपहसलार
बेकार वो दिल का रोजगार है।
ए-हुस्न-जाना..
दूंढ़ ले अब कोई नया ठिकाना...
मालूम मुझको तेरा मकाम है।
के तेरे सिवा जहाँ में
और भी बहुत काम है।
ए-हुस्न-जाना..
छोड़ कफ़स-ए-शम्मा-परवाना...
दुनिया-ए-रू में आ देख क्या आराम है।
मै नहीं! तू नहीं! दर नहीं! हरम नहीं!
कोई है,सब उसी के नाम हैं।
***************
(c) जान गोरखपुरी
***************
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें