लुट रही है फसल-ए-बहार दंगो में..
दिया किसने ये हक़ इन्हें ए-ख़ुदा
ख़ुदी है सो रही खिश्त-ओ-संगों में..
किसने बनाये हैं ये सनमकदे...
ख़ुदा भी बंट गया बन्दों में...
मेरी इन्ही आँखोंने,नजर में तेरी
देखा है खुद को कई रंगों में..
है किसे तौफ़ीक जो गैरों के चाक सिले
मै भी नंगा हो गया नंगों में....
०८ सितम्बर
२०१४
२०१४ में
उ.प्र. में फैले दंगों के ऊपर
-‘जान’
गोरखपुरी
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