जिंदगी ये, जिंदगी से महरूम
मै कहाँ....और......कहाँ तुम
क्यूँ है, कोई यूँ बला का मासूम
फिर क्यूँ ना हो होशो-दिल गुम
कयामत है कि जिन्दगी?तेरे होठों पे तबस्सुम
कोई जी गया,कोई मर गया,क्या तुम्हे भी है मालूम?
कई घर उजड़े,कई बस्तियां वीराँ हुयीं
वो मस्त आँखें है ‘जान’ मीना-ए-तलातुम (मीना-ए-तलातुम = तूफानी मयकदा)
कुछ तो बात हुयी है ‘जान’ जरुर
कई दिनों से है वो बहुत गुमसुम
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(c) जान गोरखपुरी
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पुरानी डायरी के झरोखे
से
मार्च २००६
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