शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

ख़त्म कर ये बवाल दे...

ए मेरे ख़ुदा कोई जलवा तो , दिखा ख़त्म कर ये बवाल दे
है ये जिस्म क्या है ये रूह क्या, न जुदा रहे न विसाल दे                      (विसाल= मिलन)
 
कहे मौलवी कहे पादरी, है ये पंडितों ने भी तो कहा
तू मिले उसे जो ले मान बस, न उठा कोई जो सवाल दे

हाँ चलो मेरा ये नसीब है, करूँ काफिरी तो यही सही
तेरा फैसला मुबारक तुझे, न सवाल हो न मजाल दे                        (मजाल= शक्ति,सामर्थ)

तेरी मिल्कियत तो खुदा नही, है मेरा भी तो वही नाख़ुदा                 (नाख़ुदा= खेवइया, पार करने वाला)
मैंने खुद को सौप दिया उसे, गो जलाल दे या जवाल दे                  
 (जलाल=तेज प्रकाश,ईश्वर अपना दीदार कराए)
                                                                                                               (जवाल= अवनति)


हाँ ये इश्क तो है ख़ुदा मेरे, तेरी बन्दगी का ही नाम ही
"मेरा इश्क भी कोई इश्क है, कि न खुश करे न मलाल दे"



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                 (c) जान गोरखपुरी
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         (तहरी मुशायरे में प्रेषित गज़ल)
                 २४ अप्रैल २०१५





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