रविवार, 24 मई 2015

गज़ल आरती बन गई है..



मुहब्बत का मै आसरा चाहता हूँ
तेरे इश्क में डूबना चाहता हूँ

जहाँ से सुखन की है गंगा निकलती
दिलो-जान वो चूमना चाहता हूँ

सुने है बहुत तेरे जलवों के किस्से
सरापा तेरा सामना चाहता हूँ

बनाकर मिटाना मिटाकर बनाना
वली  खत्म ये सिलसिला चाहता हूँ           (वली = सर्वज्ञ)

दिवाना बनाया है तो वस्ल भी दो
चिराग-ए-सहर हूँबुझा चाहता हूँ’’

 गज़ल आरती बन गई है मेरी अब
कि हर्फ़न् तुझे पूजना चाहता हूँ             (हर्फ़न् =अक्षरशः)


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       (c)‘जानगोरखपुरी

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