बुधवार, 6 मई 2015

इश्क क्या है,इक दुआ है... (एक रुक्नी गज़ल)

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इश्क क्या है
इक दुआ है

दिल इबादत
कर रहा है

अपना अपना
कायदा है

पत्थरों में
भी खुदा है

कौन किसका
हो सका है

नाम की ही
सब वफा है

बस मुहब्बत
आसरा है

बिन पिये दिल
झूमता है

आँख उसकी
मैकदा है

फूल कोई
खिल रहा है

कातिलाना
हर अदा है

क्या हुआ गर
बेवफा है

जहर भी तो
इक़ दवा है

अब मुकम्मल
फैसला  है

तुम हो और ना
दूसरा है

बस गज़ल अब
हमनवा है

मै रदिफ वो
काफिया है

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               (c) ‘जान’ गोरखपुरी
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